PREAMBLE & INTRODUCTION OF INDIAN CONSTITUTION.
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PREAMBLE OF INDIAN CONSTITUTION
भारतीय सविंधान की उद्देशिका निम्न प्रकार है -
"हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, पंथ- निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लियेे तथा उसके समस्त नागरिको को-
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता।
भारतीय सविंधान की उद्देशिका ka आधार पंo जवाहरलाल नेहरू द्वारा 13 डिसिम्बर, 1946 को सविंधान निर्मात्री सभा मे प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव है। उद्देशिका मे समाविष्ट सविंधान के बुनियादी तत्वों या उसकी विशेषताओं को अनुच्छेद 368 के अधीन संशोधन द्वारा उल्टा नही जा सकता है।
उद्देशिका के तत्व - उद्देशिका के उक्त मूल पाठ को पढ़ने से इसके निम्नलिखित तत्त्व परिदृशित होते हैं।
1. हम भारत के लोग
2. संपूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न
3. समाजवादी
4. पंथ- निरपेक्ष
5. लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना
6. न्याय
7. स्वतंत्रता
8. समता
9. व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्रीय एकता और अखण्डता
10. सविंधान को अंगीकृत तथा अधिनियमित करने की शक्ति
उद्देशिका का महत्व- किसी संविधि या अधिनियम के प्रारंभ में उद्देशिका को शामिल किया जाता है। इसके द्वारा यह स्पष्ट किया जाता है कि सविंधान या अधिनियम के निर्माण का उद्देश्य क्या है? सविंधान की उद्देशिका से स्पष्ट होता है कि भारत का सविंधान किस प्रकार की सरकार की स्थापना करता है तथा नागरिको को किस प्रकार की स्वंत्रता के स्रोत (भारत की जनता) सविंधान के उद्देश्यों। का वर्णन तथा सविंधान को अंगीकार करने को का उल्लेख करता है।
INTRODUCTION OF CONSTITUTION
सविंधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतू प्रायः उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय सविंधान की प्रस्तावना अमेरिकी सविंधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय सविंधान का सार, अपेक्षाऍ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया था सविंधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नही करती अतः सविंधान विधि का विशेष अनुकृपा प्राप्त नही कर सकता, परंतु न्यायालय से खारिज करते हुए सविंधान को सवोपरि माना है जिस पर कोइ प्रश्न नही उठाया जा सकता है।
भारतिय संविधान के भाग
सविंधान के तीन प्रमुख भाग हैं। भाग एक में संघ तथा उसका राज्यक्षेत्रों के विषय में टिप्पणी की गई है तथा यह बताया गया है की राज्य क्या है और उनके अधिकार क्या हैं? दूसरे भाग मे नागरिकता के विषय मे बताया गया है कि भारतीय नागरिक कहलाने का अधिकार किन लोगो के पास है और किन लोगो के पास नही है? विदेश मे रहने वालो कौन लोग भारतीय नागरिक के अधिकार प्राप्त कर सकते है और कौन नही कर सकते? तीसरे भाग में भारतीय सविंधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के विषय में विस्तार से बताया गया है।
संविधान भाग 5 नीति निर्देशक तत्व
भाग 3 तथा 4 मिलकर सविंधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते हैं, क्योकि किसी भी स्वंतत्र राष्ट्र के लिए मौलिक अधिकार तथा नीति- निर्देशक देश के निर्माण मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। नीति- निर्देशक तत्व जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व है। सर्वप्रथम ये आयरलैंड के सविंधान मे लागू किये गए थे। ये वे तत्व हैं जो सविंधान के विकास के साथ ही विकसित हुए हैं। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। भारतीय सविंधान के इस भाग मे नीति- निर्देशक तत्वों का रूपकार निश्चित किया गया है, मौलिक अधिकार तथा नीति- निर्देशक तत्व में भेद बताया गया है और नीति- निर्देशक तत्वों के महत्व को समझाया गया है।
भाग 4 (क) मूल कर्तव्य
मूल कर्तव्य मूल सविंधान में नहीं थे, इन्हे 42वें सविंधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। ये रूस से प्रेरित होकर जोड़े गए तथा सविंधान के भाग 4 (क) के अनुच्छेद 51- अ में रखें गए हैं। ये कुल 11 हैं।
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Nyc gud job dear
ReplyDeleteAll the best dear!!
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