CONSTITUTION OF INDIA
BLOG BY :- mohd. Faiz rajput
Instagram :- @iam_faizrajput1370
Twitter :- @sultanr55739933
भारतीय संविधान की मांग
1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से भारतीयों में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह धारणा बनने लगी के भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें । 1922 में महात्मा गांधी ने बोला कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छा अनुसार ही होगा" ।उनका केवल यह मत था कि भारतीयों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश संसद भारतीय संविधान को पारित करें । 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गई कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाए इसके बाद संविधान सभा के विचार का औपचारिक रूप से प्रतिपादन साम्यवादी नेता एम. एन. राय द्वारा किया गया जिसे 1934 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा मूर्त रूप प्रदान कर दिया । नेहरु जी ने कहा कि "यदि यह स्वीकार किया जाता है कि भारत के भाग्य की एकमात्र निर्णायक भारतीय जनता है तो भारतीय जनता को अपना संविधान निर्माण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए"।
भारत में जावाहरालाल नेहरु की अध्यक्षयता में अन्तरिम सरकार का गठन किया गया तथा संविधान सभा सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गयी, जिसमें से 296 हीब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 कमिश्नर छेत्रों के प्रतिनिधि तथा 93 देशी रियशातोऺ के प्रतिनिधि थे | ब्रिटिश प्रांतों के 296 प्रतिनिधियों का सांप्रदायिक आधार पर इस प्रकार विभाजन किया गया- 213 सामान्य, 79 मुसलमान तथा सिख। जुलाई, 1946 में सविंधान का चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस को 208 तथा मुस्लिम लीग को 73 स्थान प्राप्त हुए। इस चुनाव में युनियनिस्ट पार्टी-1, युनियनिस्ट मुस्लिम-1, युनियनिस्ट अनुसूचित जाति-1, कृषक प्रजा पार्टी-1, अछूत जाती संघ-1, सिख (कांग्रेस के अतिरिक्त)-1, साम्यवादी-1 तथा निर्दलीय-8 स्थान प्राप्त करने में सफल हुए।
15 अगस्त, 1947 को भारत के आजाद हो जाने के बाद यह सविंधान सभा पुर्णतः प्रभुतासंपन्न हो गई। इस सभा ने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से आरंभ कर दिया गया। सविंधान सभा के सदस्य भारत के राज्यो की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉO राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मोलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। अनसूचित वर्गो से 30 से ज्यादा सदस्य इस सभा में शामिल थे। श्री सचिदानंद सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति थे। किंतु बाद में डॉO राजेन्द्र प्रसाद को सभापति निर्वाचन किया गया। भीमराव रामजी अंबेडकर को निर्मात्री समिति का अध्यक्ष चुना गया था। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 166 दिन बैठक हुई। जिसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान सभा की पहली बैठक इस कारण अनिश्चितता के वातावरण में 9 दिसम्बर, 1946 को प्रारंभ हुई कि मुस्लिम लीग के सदस्यों ने सविंधान सभा की बैठक के बहिष्कार करने की घोषणा की थी। 9 डिसिम्बर, 1946 को ही सविंधान सभा ने सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किया। दो दिन बाद सविंधान सभा के सदस्यों द्वारा 11 दिसम्बर, 1946 को डॉO राजेन्द्र प्रसाद को सविंधान सभा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया।
भारतीय संविधान का प्रारूप
भारत, संसदीय प्रडाली की सरकार वाला एक सवंतंत्र, प्रभुसत्तासम्पन्न, समाजवादी लोकतंत्र सविंधान है। यह गणराज्य भारत के सविंधान के अनुसार शासित है। भारत का सविंधान सविंधान द्वारा 26 नवम्बर, 1946 का पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 se प्रभावी हुआ। 26 जनवरी का दिन भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गयी जिसकी सरचना कुछ अपवादो के अतिरिक्त संघीय है। केंद्रीय कार्यपालिका का सविंधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के सविंधान की धारा 79 के अनुसार, केंद्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यो की परिषद् राज्यसभा तथा लोगो का सदन लोक सभा के नाम से जाना जाता है। सविंधान की धारा 74 (1) में यह व्यवस्था की गयी है कि राष्ट्रपति की सहायत करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख प्रधान मंत्री होगा, राष्ट्रपति इस मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार अपने कार्यो का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है जो वर्तमान में नरेंद्र मोदी हैं।
भारतीय संविधान की प्रकृति
भारतीय सविंधान की प्रकृति संघात्मक है या एकात्मक, इसके सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान इसे संघात्मक सविंधान की संज्ञा देते हैं। इसके कुछ विद्वान् इसे एकात्मक सविंधान मानते हैं लेकिन ये दोनों ही मत वादी हैं। वास्तविक स्थिति यह है कि भारत ka सविंधान न तो पुर्णतया एकात्मक है और न ही संघात्मक बल्कि इसमें एकात्मक और संघात्मक दोनों सविंधान के तत्व विधमान हैं, अतः इसे अर्ध्दसऺघीय सविंधान कहना अधिक समीचीन है।
संविधान के निर्माता :- B. R. Ambedkar
भारतीय संविधान की विशेषताएं
1. यह संघ राज्यो के परस्पर समझौते से नहीं बना हैं।
2. राज्य अपना पृथक् सविंधान नहीं रख सकते हैं। केवल एक ही सविंधान केंद्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है।
3. भारत में व्दैध् नागरिकता नहीं है। केवल नागरिकता हैं।
4. भारतीय सविंधान में आपातकाल लागू करने के उपबंध है (352 अनुच्छेद) के लागू होने पर राज्य केंद्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक सविंधान बन जायेगा। इस स्तिथि में केंद्र- राज्यो पर पुर्ण संप्रभु हो जाता है।
5. राज्यो के नाम, क्षेत्र तथा सीमा केंद्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है (बिना राज्यो की सहमति से) (अनुच्छेद 3) अतः राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नही हैं। केंद्र संघ को पुननिर्मित कर सकती है।
6. सविंधान की 7वी अनुसूचित में तीन सूचियाँ हैं - संघीय, राज्य तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केंद्र पक्ष मे है।
6.1 संघीय सूची में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है।
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है।
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्त्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्तिथि में राज्य हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते।
क1. अनुo 249- राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है (2/3 बहुमत से) किंतु यह बंधन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है।
क2. अनुच्छेद 250 - राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर सांसद को राज्य सूची के विषय पर विधि निर्माण का अधिकार स्वतः मिल जाता है।
क3. अनुच्छेद 252 - दो या अधिक राज्यो की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है (केवल सम्बन्धित राज्यो पर)।
क4. अनुच्छेद 253 - अंतर्राष्ट्रिय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है।
क5. अनुच्छेद 356 - जब किसी राज्य मे राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्तिथि मे संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है।
7. अनुच्छेद 155 - राजयपालो की नियुक्ति पूर्णतः केंद्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केंद्र राज्यो पर नियंतरण रख सकता है।
8. अनुच्छेद 360 - वितीय आपातकाल में राज्यो वित पर भी केंद्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा में केंद्र राज्यो को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है।
9. प्रशासनिक निर्देश (अनुच्छेद 256-257) - केंद्र राज्यो को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये, के बारे में निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिया जा सकते है, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
10. अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है। ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णतः केंद्र के अधीन है, जबकि ये सेवा राज्यो मे देते हैं राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है।
11. ऐकीकृत न्यायपालिका।
12. राज्यों की कार्यपालिका शक्तियां संघीय कार्यपालिका शक्तियों पर प्रभावी नहीं हो सकती हैं।
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भारतीय संविधान की मांग
1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से भारतीयों में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह धारणा बनने लगी के भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें । 1922 में महात्मा गांधी ने बोला कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छा अनुसार ही होगा" ।उनका केवल यह मत था कि भारतीयों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश संसद भारतीय संविधान को पारित करें । 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गई कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाए इसके बाद संविधान सभा के विचार का औपचारिक रूप से प्रतिपादन साम्यवादी नेता एम. एन. राय द्वारा किया गया जिसे 1934 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा मूर्त रूप प्रदान कर दिया । नेहरु जी ने कहा कि "यदि यह स्वीकार किया जाता है कि भारत के भाग्य की एकमात्र निर्णायक भारतीय जनता है तो भारतीय जनता को अपना संविधान निर्माण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए"।
गांधी जी के साथ नेहरू जी संविधान के बारे में चर्चा करते हुए।
कैबिनेट मिशन योजना का क्रियान्वयनभारत में जावाहरालाल नेहरु की अध्यक्षयता में अन्तरिम सरकार का गठन किया गया तथा संविधान सभा सदस्यों की कुल संख्या 389 निश्चित की गयी, जिसमें से 296 हीब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 कमिश्नर छेत्रों के प्रतिनिधि तथा 93 देशी रियशातोऺ के प्रतिनिधि थे | ब्रिटिश प्रांतों के 296 प्रतिनिधियों का सांप्रदायिक आधार पर इस प्रकार विभाजन किया गया- 213 सामान्य, 79 मुसलमान तथा सिख। जुलाई, 1946 में सविंधान का चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस को 208 तथा मुस्लिम लीग को 73 स्थान प्राप्त हुए। इस चुनाव में युनियनिस्ट पार्टी-1, युनियनिस्ट मुस्लिम-1, युनियनिस्ट अनुसूचित जाति-1, कृषक प्रजा पार्टी-1, अछूत जाती संघ-1, सिख (कांग्रेस के अतिरिक्त)-1, साम्यवादी-1 तथा निर्दलीय-8 स्थान प्राप्त करने में सफल हुए।
15 अगस्त, 1947 को भारत के आजाद हो जाने के बाद यह सविंधान सभा पुर्णतः प्रभुतासंपन्न हो गई। इस सभा ने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से आरंभ कर दिया गया। सविंधान सभा के सदस्य भारत के राज्यो की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉO राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मोलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। अनसूचित वर्गो से 30 से ज्यादा सदस्य इस सभा में शामिल थे। श्री सचिदानंद सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति थे। किंतु बाद में डॉO राजेन्द्र प्रसाद को सभापति निर्वाचन किया गया। भीमराव रामजी अंबेडकर को निर्मात्री समिति का अध्यक्ष चुना गया था। संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 166 दिन बैठक हुई। जिसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया
संविधान सभा की पहली बैठक इस कारण अनिश्चितता के वातावरण में 9 दिसम्बर, 1946 को प्रारंभ हुई कि मुस्लिम लीग के सदस्यों ने सविंधान सभा की बैठक के बहिष्कार करने की घोषणा की थी। 9 डिसिम्बर, 1946 को ही सविंधान सभा ने सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष निर्वाचित किया। दो दिन बाद सविंधान सभा के सदस्यों द्वारा 11 दिसम्बर, 1946 को डॉO राजेन्द्र प्रसाद को सविंधान सभा के स्थायी अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया।
भारतीय संविधान का प्रारूप
भारत, संसदीय प्रडाली की सरकार वाला एक सवंतंत्र, प्रभुसत्तासम्पन्न, समाजवादी लोकतंत्र सविंधान है। यह गणराज्य भारत के सविंधान के अनुसार शासित है। भारत का सविंधान सविंधान द्वारा 26 नवम्बर, 1946 का पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 se प्रभावी हुआ। 26 जनवरी का दिन भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गयी जिसकी सरचना कुछ अपवादो के अतिरिक्त संघीय है। केंद्रीय कार्यपालिका का सविंधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के सविंधान की धारा 79 के अनुसार, केंद्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यो की परिषद् राज्यसभा तथा लोगो का सदन लोक सभा के नाम से जाना जाता है। सविंधान की धारा 74 (1) में यह व्यवस्था की गयी है कि राष्ट्रपति की सहायत करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख प्रधान मंत्री होगा, राष्ट्रपति इस मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार अपने कार्यो का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है जो वर्तमान में नरेंद्र मोदी हैं।
भारतीय संविधान की प्रकृति
भारतीय सविंधान की प्रकृति संघात्मक है या एकात्मक, इसके सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विद्वान इसे संघात्मक सविंधान की संज्ञा देते हैं। इसके कुछ विद्वान् इसे एकात्मक सविंधान मानते हैं लेकिन ये दोनों ही मत वादी हैं। वास्तविक स्थिति यह है कि भारत ka सविंधान न तो पुर्णतया एकात्मक है और न ही संघात्मक बल्कि इसमें एकात्मक और संघात्मक दोनों सविंधान के तत्व विधमान हैं, अतः इसे अर्ध्दसऺघीय सविंधान कहना अधिक समीचीन है।
संविधान के निर्माता :- B. R. Ambedkar
भारतीय संविधान की विशेषताएं
1. यह संघ राज्यो के परस्पर समझौते से नहीं बना हैं।
2. राज्य अपना पृथक् सविंधान नहीं रख सकते हैं। केवल एक ही सविंधान केंद्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है।
3. भारत में व्दैध् नागरिकता नहीं है। केवल नागरिकता हैं।
4. भारतीय सविंधान में आपातकाल लागू करने के उपबंध है (352 अनुच्छेद) के लागू होने पर राज्य केंद्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक सविंधान बन जायेगा। इस स्तिथि में केंद्र- राज्यो पर पुर्ण संप्रभु हो जाता है।
5. राज्यो के नाम, क्षेत्र तथा सीमा केंद्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है (बिना राज्यो की सहमति से) (अनुच्छेद 3) अतः राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नही हैं। केंद्र संघ को पुननिर्मित कर सकती है।
6. सविंधान की 7वी अनुसूचित में तीन सूचियाँ हैं - संघीय, राज्य तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केंद्र पक्ष मे है।
6.1 संघीय सूची में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है।
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है।
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्त्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्तिथि में राज्य हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते।
क1. अनुo 249- राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है (2/3 बहुमत से) किंतु यह बंधन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है।
क2. अनुच्छेद 250 - राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर सांसद को राज्य सूची के विषय पर विधि निर्माण का अधिकार स्वतः मिल जाता है।
क3. अनुच्छेद 252 - दो या अधिक राज्यो की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है (केवल सम्बन्धित राज्यो पर)।
क4. अनुच्छेद 253 - अंतर्राष्ट्रिय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है।
क5. अनुच्छेद 356 - जब किसी राज्य मे राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्तिथि मे संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है।
7. अनुच्छेद 155 - राजयपालो की नियुक्ति पूर्णतः केंद्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केंद्र राज्यो पर नियंतरण रख सकता है।
8. अनुच्छेद 360 - वितीय आपातकाल में राज्यो वित पर भी केंद्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा में केंद्र राज्यो को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है।
9. प्रशासनिक निर्देश (अनुच्छेद 256-257) - केंद्र राज्यो को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये, के बारे में निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिया जा सकते है, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
10. अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है। ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णतः केंद्र के अधीन है, जबकि ये सेवा राज्यो मे देते हैं राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है।
11. ऐकीकृत न्यायपालिका।
12. राज्यों की कार्यपालिका शक्तियां संघीय कार्यपालिका शक्तियों पर प्रभावी नहीं हो सकती हैं।
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